नई सरसों की आपूर्ति से कीमतों पर दबाव पड़ने की संभावना
मार्च माह में प्रमुख उत्पादक राज्यों की मंडियों में लगभग 14.50 लाख टन सरसों की भारी आवक हुई, और सरकारी क्रय केंद्रों पर भी करीब 50 हजार टन सरसों पहुंची। सरकारी एजेंसियों ने 5950 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सरसों की खरीदारी की, जबकि थोक मंडियों में इसके भाव में उतार-चढ़ाव जारी रहे। कम कीमतों पर सरसों खरीदने में व्यापारियों, स्टॉकिस्टों और मिलर्स-प्रोसेसर्स की अच्छी रुचि देखने को मिली है। माना जा रहा है कि सरकारी एजेंसियों की खरीद बढ़ने से इस महत्वपूर्ण तिलहन की कीमतों में कुछ मजबूती आ सकती है। केंद्र सरकार ने पहले ही राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में सरसों खरीदने की अनुमति दे दी है और इसकी निर्धारित मात्रा भी तय कर दी है। इन राज्यों में सरकारी क्रय केंद्र खोले जा चुके हैं, और अप्रैल माह से वहां खरीद की प्रक्रिया तेज होने की उम्मीद है। किसानों को इस खरीद की शुरुआत का बेसब्री से इंतजार है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार, 2024-25 के रबी सीजन में सरसों का घरेलू उत्पादन घटकर 128.7 लाख टन रह सकता है, जबकि उद्योग-व्यापार संगठनों का अनुमान है कि यह 111.25 लाख टन तक सीमित रह सकता है। आमतौर पर मार्च से मई के बीच सरसों की सबसे अधिक आवक होती है, और इसके बाद आपूर्ति में कमी आनी शुरू हो जाती है। अप्रैल-मई के दौरान सरकारी एजेंसियां भी खरीद प्रक्रिया में सक्रिय रहती हैं। भले ही बिजाई क्षेत्र में कमी आने से सरसों का उत्पादन थोड़ा घटने की संभावना है, लेकिन इसकी गुणवत्ता काफी अच्छी बताई जा रही है। व्यापार विश्लेषकों के अनुसार, इस बार शुरुआत से ही मंडियों में सूखा माल आ रहा है, जिसमें नमी कम और तेल का अंश ज्यादा है। इस कारण खरदारों को इसकी खरीद में कोई हिचकिचाहट नहीं हो रही है। हालांकि, किसानों को अपने उत्पाद का आकर्षक और लाभकारी मूल्य प्राप्त करने में संघर्ष करना पड़ रहा है। प्रमुख उत्पादक राज्यों में सरसों की फसल की कटाई के लिए मौसम अनुकूल है, और राजस्थान में 51 लाख टन तथा उत्तर प्रदेश में 15 लाख टन सरसों के उत्पादन का अनुमान है।