सरकारी गोदामों में चावल का रिकॉर्ड भंडार, निर्यात बढ़ाने की संभावना
विशेषज्ञों का मानना है कि दिसंबर की शुरुआत में सरकारी गोदामों में चावल का रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा भंडार भारत को वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर दे सकता है। दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक के रूप में, भारत के भंडार में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो इस अवधि के लिए अब तक का उच्चतम स्तर माना जा रहा है। यह वृद्धि मुख्य रूप से नई फसल के धान की तेज़ खरीद के कारण हुई है, जिसे राज्य संचालित एजेंसियों द्वारा किसानों से बड़े पैमाने पर खरीदा गया। दिसंबर तक, सरकारी गोदामों में चावल का कुल भंडार, जिसमें बिना कुटाई वाला धान भी शामिल है, 57.57 लाख मीट्रिक टन पहुँच गया। यह सरकार द्वारा 1 जनवरी के लिए निर्धारित 7.61 लाख टन के बफर लक्ष्य से कहीं अधिक है, जो खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत स्थिति को दर्शाता है। हालांकि, भंडार में यह वृद्धि बाजार और व्यापार से जुड़े नए संकेत भी दे रही है। चावल के साथ-साथ गेहूं के भंडार में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। दिसंबर की शुरुआत में सरकारी गेहूं का भंडार 29.14 लाख टन था, जबकि पिछले वर्ष इसी समय यह आंकड़ा 20.6 लाख टन था। दोनों प्रमुख अनाजों में आई यह वृद्धि सरकारी खरीद नीतियों की सक्रिय भूमिका को दर्शाती है। सरकारी एजेंसियों को किसानों से बड़े पैमाने पर धान खरीदना पड़ा क्योंकि खुले बाजार में कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे थीं। किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए सरकारी खरीद का दायरा बढ़ाया गया, जिसके परिणामस्वरूप गोदामों में भंडार तेजी से बढ़ा। इन नीतियों ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली और समग्र खाद्य सुरक्षा को मजबूत किया है, साथ ही निर्यात बढ़ाने के लिए संभावनाओं को भी जन्म दिया है। यदि सरकार निर्यात के लिए अनुकूल नीति अपनाती है, तो भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी आपूर्ति बढ़ा सकता है, जिससे थाईलैंड, वियतनाम और पाकिस्तान जैसे प्रतिस्पर्धी देशों पर दबाव पड़ सकता है। घरेलू स्तर पर भी चावल की उपलब्धता पर्याप्त बनी हुई है। सरकारी भंडार के साथ-साथ निजी व्यापारी भी निर्यात के लिए स्टॉक रखते हैं, जिससे संकेत मिलता है कि आने वाले महीनों में भारत का चावल आपूर्ति वैश्विक स्तर पर स्थिर या बढ़ती रह सकती है। हालांकि, इतनी बड़ी मात्रा में भंडार बनाए रखना सरकार के लिए वित्तीय और भंडारण चुनौतियां भी लेकर आता है। लंबे समय तक भंडार रखने से लागत बढ़ती है, जिससे नीति-निर्माताओं के सामने यह सवाल आता है कि इस अतिरिक्त भंडार का सबसे प्रभावी उपयोग कैसे किया जाए-चाहे वह निर्यात के माध्यम से हो, कल्याणकारी योजनाओं में हो या खुले बाजार में बिक्री के लिए। कुल मिलाकर, सरकारी भंडार भारत की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करता है और वैश्विक अनाज बाजार में रणनीतिक बढ़त प्रदान करता है। आने वाले महीनों में यह देखना होगा कि इस अतिरिक्त भंडार का उपयोग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर कैसे किया जाता है।