सोयाबीन के रकबे में 2 फीसदी से ज्यादा की बढ़त

सोयाबीन की बोआई में भी अच्छी खबर आ रही है। 13 अगस्त तक के बोआई आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले सोयाबीन के रकबे में 2 फीसदी से ज्यादा की बढ़त आई है। अगर बोआई और बढ़ती है तो आने वाले दिनों खासकर सितंबर के अंत तथा अक्टूबर में मंडियों में नई फसल की आवक शुरू होने से कीमतें और गिर जाएंगी। फिलहाल सोयाबीन का भाव 6000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा है, जबकि इसका एमएसपी 4300 रुपये प्रति क्विंटल ही है। सोयाबीन की पैदावार अच्छी रहती है तो वैश्विक स्तर पर खाद्य तेल खासकर पाम ऑयल की कीमतों में नरमी आएगी क्योंकि भारत अपनी कुल जरूरत का तकरीबन 60 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है। देश में खाद्य तेल के भाव अब भी काफी ऊंचे हैं और चंद महीने पहले तो भाव आसमान छू रहे थे। इसकी वजह आयात पर भारत की निर्भरता है और वैश्विक स्तर पर कीमतें बढ़ीं तो यहां के बाजार पर आंच जरूर आएगी। जहां तक दलहनी फसलों का प्रश्न है इनकी कुल बोआई भी पीछे चल रही है, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण दलहनी फसल अरहर या तुअर की बोआई दूसरी दलहनी फसलों की तुलना में ज्यादा पीछे है। 13 अगस्त तक के आंकड़ों के मुताबिक देश में अरहर के रकबे में पिछले साल 13 अगस्त तक के मुकाबले 11.67 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। उड़द की बोआई भी 4.57 फीसदी कम है, मूंग की बोआई में केवल 0.35 फीसदी की कमी। अरहर की बोआई में ज्यादा कमी आई तो म्यांमार, तंजानिया, मोजांबिक और मलावी जैसे चुनिंदा आपूर्तिकर्ता देशों में इसकी कीमतें बढेंगी। आयात पर पिछले एक साल में लगातार ढील देने से ज्यादातर दलहनी फसलों (मसूर को छोड़कर) की कीमतें पिछले कुछ महीनों से 6600 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी से नीचे या उसके आसपास चल रही हैं। दूसरी ओर कपास, सोयाबीन जैसी नकदी फसलों की कीमतें एमएसपी से ऊपर ही चल रही हैं। सीजन के दौरान एक समय तो एमएसपी से बहुत अधिक छलांग मार गई थीं। इस वजह से इस बोआई सीजन में किसानों का झुकाव कपास और सोयाबीन की तरफ बढ़ा है। बोआई के आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं। अगर दलहन के रकबे में और कमी आई तो वैश्विक स्तर पर कीमतें तेजी से बढ़ेंगी। इससे एक बार फिर 2017 और 2018 जैसी स्थिति पैदा हो सकती है, जब देश में दलहनों की कीमत आसमान छू रही थीं।

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